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जमीन कारोबारी के सीने को किया गोलियों से छलनी,रांची में एक महीने में तीन जमीन कारोबारी की हत्या
रांची:- जमीन कारोबारियों पर आफत की घड़ी आ गयी है।पूरे राज्य में जमीन कारोबारियों की दिन प्रतिदिन हत्या की घटना में काफी इजाफा हो रहा है।जबकि बहुत ऐसे मामले में साफ नही हो पाता है कि मामला जमीन से जुड़ा हुआ है।सिर्फ रांची शहर की बात करे तो इसी महीने में ककई लोगो की हत्या हो चुकी है।जिसमें 21 दिसंबर 2019 मांडर थाना क्षेत्र के मुड़मा में अज्ञात अपराधियों ने जमीन विवाद में जेएमएम नेता सुबोध नंद तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी,9 दिसंबर 2019 : कांके थाना क्षेत्र के सर्वोदय नगर में अधिवक्ता राम प्रवेश सिंह की जमीन विवाद में गोली मारकर हत्या कर दी थी। ऐसा ही एक मामला 30 दिसंबर की है जहां
रातू के पिर्रा में मोटरसाइकिल सवार दो नकाबपोश अपराधियों ने सोमवार शाम जमीन कारोबारी कमलेश दुबे (56) की गोली मार कर हत्या कर दी। कमलेश के सीने में तीन गोलियां मारी गई हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक घटना के वक्त कमलेश पिर्रा चौक पर स्थित अपनी किराना दुकान से शाम लगभग सात बजे घर लौट रहे थे। जैसे ही वह अपने घर के गेट के पास पहुंचे, मोटरसाइकिल सवार दो अपराधियों ने उन पर चार गोलियां चलाईं। इनमें तीन गोलियां उनके सीने में लगीं। गोली मारने के बाद दोनों अपराधी काठीटांड़ चौक की ओर भाग निकले।
परिजन बोले, पुराने पार्टनर से थी दुश्मनी
कमलेश के परिजनों का आरोप है कि कमलेश की रांची के हरमू में रहने वाले उनके पुराने पार्टनर नागेंद्र प्रसाद सैनी से दुश्मनी थी। कई अन्य लोगों से भी लेन-देन को लेकर विवाद की बात सामने आ रही है। पुलिस हर पहलू की जांच कर रही है। खबर लिखे जाने तक इस मामले में किसी के गिरफ्तारी की सूचना नहीं है। कमलेश के परिवार में पत्नी के अलावा तीन बेटे, मां व एक सगे भाई हैं।
जिस कॉलेज में पढ़े उसी कॉलेज में बनेंगे प्राचार्य
*चतरा( निकेश मिश्रा)*:-चतरा महाविद्यालय के प्राचार्य *डॉ. तेजनारायण सिंह* आज सेवनिर्वित हो रहे हैं। नए प्राचार्य के रूप में *डॉ. रामानंद पांडेय* लेंगे प्रभार
नए वर्ष में नए प्राचार्य से शैक्षणिक सत्र में स्नातकोत्तर सहित अन्य विषयों की पढाई को लेकर चतरा वासियों में जगी नई उम्मीद
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ. रामानंद पांडेय चतरा महाविद्यालय के ही छात्र रहे हैं ।
श्री पांडेय अनुशासन के प्रति शुरू से सजग रहे हैं अतः अनुमान है कि अब महाविद्यालय में अच्छे संस्कार देखने को मिल सकते हैं।
उनके प्राचार्य बनने के बाद सभी वर्गों में पठन- पाठन की सुविधा में और सुधार की संभावना है ।
श्री पांडेय शुरू से ही पढ़ने वाले छात्रों को हर सम्भव मदद करते आये हैं।
नए वर्ष में नए प्राचार्य से शैक्षणिक सत्र में स्नातकोत्तर सहित अन्य विषयों की पढाई को लेकर चतरा वासियों में जगी नई उम्मीद
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ. रामानंद पांडेय चतरा महाविद्यालय के ही छात्र रहे हैं ।
श्री पांडेय अनुशासन के प्रति शुरू से सजग रहे हैं अतः अनुमान है कि अब महाविद्यालय में अच्छे संस्कार देखने को मिल सकते हैं।
उनके प्राचार्य बनने के बाद सभी वर्गों में पठन- पाठन की सुविधा में और सुधार की संभावना है ।
श्री पांडेय शुरू से ही पढ़ने वाले छात्रों को हर सम्भव मदद करते आये हैं।
खेदू यादव के अध्यक्षता में पोस्ता उन्मूलन पर बैठक
चतरा:-प्रतापपुर प्रखंड के रामपुर पंचायत में सोमवार को ग्रामीणों की बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता पंचायत की मुखिया खेदू यादव ने की। मौके पर थाना प्रभारी पीसी सिन्हा मौजूद थे। बैठक में मुख्य रूप से पोस्ता की खेती उन्मूलन पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में मुखिया ने ग्रामीणों को पोस्ता की खेती करने वालों के विरुद्ध की जाने वाली कार्रवाई से अवगत कराया गया। साथ-साथ उसकी खेती से होने वाले नुकसान से भी ग्रामीणों को अवगत कराया गया। थाना प्रभारी ने कहा कि रामपुर पंचायत के गेड़े, धरधरी तथा बरहे के जंगलों में बड़े पैमाने पर पोस्ता की खेती होती है। इसमें संलिप्त कई लोग जेल भेजे जा चुके हैं। मुखिया ने उपस्थित ग्रामीणों को पोस्ता की खेती नहीं करने की अपील की। थाना प्रभारी ने ग्रामीणों को खेती करने वालों को चेतावनी दी। कहा कि पोस्ता की खेती करना गैर कानूनी है। खेती करने वाले किसी भी हालत में बख्से नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि पोस्ता की खेती करने वालो के विरूद्ध एनडीपीएस एक्ट के तहत कानूनी कारवाई की जाएगी। इधर ग्रामीणों ने बताया कि गांव से करीब दस किलोमीटर दूर गेडे़, धरधरी, बरहे तथा योगीयारा पंचायत के भीमडाबर, लिदीक, बामी, शिकारपुर, गोराडीह, कुंडी, हाथीसुर आदि गांव के जंगलों व्यापक स्तर पर पोस्ता की खेती हो रही है। बैठक में एसआई केशव प्रसाद शर्मा, वार्ड सदस्य संजय राम, सिद्धार्थ शर्मा, सलाउद्दीन हाफीज सहित ग्रामीण मौजूद थे।
कुआं में गिरने से युवक की मौत
चतरा :-सिमरिया थाना क्षेत्र के तिबाब गांव निवासी 30 वर्षीय मोहन गंझु की मौत कुआं में डूबने से हो गया । ग्रामीणों ने बताया कि मोहन गंझू क्रिसमस के त्यौहार मनाने के लिए गया था और लौटते वक्त शराब का अधिक सेवन कर लेने के कारण रास्ते में पड़ने वाले कुएं में जा गिरा। सिमरिया थाना प्रभारी लव कुमार सिंह ने पूरे मामले की तहकीकात करने में लगे हुए हैं । बताया जाता है कि मोहन गंझू को घर नहीं आने के बाद से लोग खोज रहे थे इसी बीच ग्रामीणों ने कुआं में तैरता शव दिखा जिसके बाद शव
निकालने के बाद पहचान मोहन गंझु के रूप में किया गया।
निकालने के बाद पहचान मोहन गंझु के रूप में किया गया।
शहर में शुरू हुई वाहनों की जांच
संवाददाता मेदिनीनगर: तीन महीने के उपरांत एसपी पलामू के निर्देश पर शहर में सोमवार से फिर वाहनों की जांच शुरू की गई इस क्रम में आज रेडमा चौक पर वाहनों की जांच की गई ।ट्रैफिक प्रभारी रुद्रांश सरस के नेतृत्व में जांच अभियान प्रारंभ किया गया। इस क्रम में एएसआई जगमोहन बांद्रा संतोष कुमार भी उपस्थित थे। रेडमा चौक पर दर्जनों की संख्या में बिना हेलमेट के वाहन चालक पकड़े गए। इस बाबत ट्रैफिक प्रभारी रुद्रांश सरस ने बताया कि अब वाहन जांच अभियान जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि शहर के सभी भागों में जांच अभियान की जाएगी। इस दौरान बिना हेलमेट और कागजात के पकड़े गए वाहनों को जप्त किया जाएगा। कहा कि किसी हाल में ट्रैफिक नियम का उल्लंघन करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा ।इधर वाहन जांच प्रारंभ होते ही बिना हेलमेट पहने वाहन चालकों में हड़कंप मच गई। कई लोग जांच होते देख पीछे से ही भागना प्रारंभ कर दिए। ज्ञातव्य हो कि पलामू पुलिस अधीक्षक अजय लिंडा ने 2 दिन पूर्व भी शहर वासियों को ट्रैफिक नियम पालन करने का अपील किया था। एसपी ने कहा था कि सोमवार से जांच अभियान प्रारंभ की जाएगी।
शांतिपूर्ण मतदान सम्पन्न कराने की लेकर किया गया मिलन समारोह
कान्हाचट्टी (अभिषेक सिंह ): राजपुर थाना परिसर में सोमवार को पुलिस पब्लिक मिलन समारोह का आयोजन किया गया यह आयोजन 2019 विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न होने के उपलक्ष्य में राजपुर पुलिस द्वारा आयोजित किया गया l मौके पर शामिल होने वाले प्रखण्ड के सभी जनप्रतिनिधि एवम बुद्धिजीवियों को चुनाव शांति पूर्ण सम्पन्न कराने में सहयोग करने के लिए बधाई दिए मुख्य अतिथि डीएसपी वरुण देवगम व अभियान डीएसपी निगम प्रसाद ,एसडीपीओ वरुण रजक ने लोगो को धन्यवाद दिए साथ ही नए वर्ष की शुभकामनाएं दी श्री देवगन ने जनप्रतिनिधियों को संबोधित करते हुवे कहा कि कान्हाचट्टी प्रखण्ड में हर साल बड़ी पैमाने पर पोसते की खेती होते रही इस पर पुलिस हद तक काबू भी पाई है l इस खेती को पूर्ण रूप से बंद करने में पुलिस के साथ साथ जनप्रतिनिधि व आमलोग का सहयोग भी जरूरी है मौके पर मौजूद उतरी वन प्रमंडल के रेंजर अशोक कुमार ने वन भूमि पर पोसते की खेती करने वाले लोगों की गुप्त सूचना देने की बात कही इन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर लोग वन भूमि पर पोसते की खेती करते है l आगे श्री देवगन ने सभी विभाग के पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से अपील करते हुवे कहा कि पोसते की खेती को पूर्ण रूप से बंद किया जाय इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करने की जरूरत है l साथ ही लोगो को इसके दुसप्रभाव व बुराइयों को जागरूकता चलाकर बताने की अपील की l इसी बहाने थाना परिसर में पार्टी का भी आयोजन किया गया l सभी अधिकारियों जनप्रतिनिधियों व आम बुद्धिजीवियों ने मिलकर भोजन किया मौके पर इस्पेक्टर लवकुमार,थानाप्रभारी शशिभूषण कुमार, प्रमुख रुना देवी, समाजसेवी अरुण सिंह, एस आई विकाश कुमार, योगेश यादव, राजेन्द्र राम, सुरेश यादव, राजेश दास, बैजनाथ सिंह, जगदीश दांगी, मो शेरशाह, राकेश सिंह के साथ सैकड़ों प्रशासनिक पदाधिकारी मौजुद थे l
नोट :- लोगो के साथ बैठक करते डीएसपी एसडीपीओ व अन्य
नोट :- लोगो के साथ बैठक करते डीएसपी एसडीपीओ व अन्य
नववर्ष के आगमन के पूर्व जगन्नाथपुर थाना प्रभारी ने 86 वर्षीय बुजुर्ग मुण्डा को किया सम्मानित
चाईबासा: जगन्नाथपुर थाना प्रभारी मधुसूदन मोदक अपने कार्यशैली से जहाँ क्षेत्र के युवाओं के लिए आदर्श है वही क्षेत्र के बुजुर्गो भी इन्हें अपना दोस्त समझते है। थाना प्रभारी मोदक के कारण क्षेत्र में न सिर्फ शान्ति है बल्कि क्षेत्र के बड़े बुज़ुर्गो का भी मान सम्मान में बढ़ोतरी हुई है, इसी कड़ी को जारी रखते हुए नववर्ष के पूर्व सोमवार को थाना प्रभारी मधुसुदन मोदक ने एक बार फिर लीक से हटकर थाना अन्तर्गत बाँसकाटा गाँव के बुजुर्ग मुण्डा भागीरथी प्रधान, 86 वर्ष को धोती, गमछा, स्वेटर तथा कम्बल देकर सम्मानित करते हुए समाज सेवा की भावना को उजागर किया है।
बता दें कि थाना प्रभारी मोदक ने सोमवार को जगन्नाथपुर थाना क्षेश्र के बाँसकांटा का 86 बर्षीय बुजुर्ग मुण्डा भागीरथी प्रधान को धोती, गमछा, स्वेटर और कम्बल देकर सम्मानित किया। मुण्डा भागीरथी प्रधान वर्ष 1970 से लगातार बाँसकाँटा गाँव के मुण्डा रहकर लोगो की सेवा कर रहे है। श्री प्रधान अपने कुशल कार्यों के लिए समाज और क्षेत्र में इनकी छवि बहुत अच्छी और सराहनीय है। मुण्डा जी ने कहा कि मेरा बेटा संजीव कुमार प्रधान बहुत संस्कारी एवं गुणवान है वह एवं उनकी पत्नी मेरा बहुत खयाल रखते है।
मुण्डा जी को सम्मानित करते हुए थाना प्रभारी मधुसूदन मोदक ने कहा कि बुजुर्गों का मान सम्मान करना हमारी भारतीय संस्कृति की अनूठी परम्परा रही है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी एवं हमारे माननीय मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी इनके उदाहरण है जिन्होंने अपने परिवार के साथ समाज के सभी बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान करते है। हमे इन महापुरुषों से सबक लेनी चाहिए। जिस घर मे बड़े बुजुर्गों का सम्मान होता है वह घर ज़न्नत के समान है। उन्होंने आगे कहा कि मुण्डा मानकी समाज का एक अभिन्न अंग ही नही बल्कि ग्रामीण व्यवस्था का आधार स्तम्भ भी है। इनके सहयोग से ही गाँव मे जागरुकता लाकर अपराध को रोका जा सकता है। इनको समाज मे सम्मान मिलना चाहिए। ये समाज के राजनीतिक, सामाजिक ,आध्यात्मिक व न्यायिक व्यवस्था का धरोहर हैं।
थाना प्रभारी मोदक ने लोगो से अपील किया कि बच्चों को शिक्षा के साथ साथ अच्छे संस्कार दे ताकि बच्चा एक अच्छा नागरिक बनकर अपने परिवार, गाँव एवं समाज के बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान करें । समाज मे अपना, अपना परिवार का नाम तथा अपने क्षेत्र का नाम रोशन भी कर करे।
इस अवसर पर पदमपुर मुण्डा रामजीवन महापात्रा, मुंडाजी का बेटा संजीव कुमार प्रधान, स अ नि उमेश प्रसाद, तारकनाथ सिंह, उमेश कुमार सिंह एवं ग्रामीण उपस्थित थे।
यह सरकार भाजपा जैसे भाषण की सरकार नही है :-सत्यानंद भोक्ता
रांची:-झारखंड सरकार में नवनियुक्त मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने दावा किया है कि झामुमो-कांग्रेस-राजद की गठबंधन सरकार 20 साल चलेगी। यह सरकार घर-घर, गांव-गांव पहुंचेगी। वे सोमवार को रांची के राजद कार्यालय में मीडिया से मुखातिब थे। उन्होंने कहा कि यह भाजपा की तरह भाषण, राशन की सरकार नहीं है। विभागों के बंटवारे के बारे में उन्होंने कहा कि जो भी विभाग मिलेगा, प्राथमिकता तय कर काम होगा।उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि हमें हराने के लिए पीएम से लेकर अमित शाह तक पहुंचे, पर जनता ने उन्हें जवाब दे दिया।
बिहार में भी भाजपा का यही हश्र होगा:-जयप्रकाश नारायण
मौके पर राजद के झारखंड प्रभारी जय प्रकाश नारायण ने
कहा कि बिहार में भी भाजपा का यही हश्र होगा। महागठबंधन में नीतीश कुमार की वापसी के सवाल पर उन्होंने दो टूक कहा कि सवाल ही नहीं उठता।
बता दें कि सत्यानंद भोक्ता ने हेमंत सोरेन के साथ रविवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में मंत्री पद की शपथ ली थी। वे राजद कोटे से मंत्री बनाए गए हैं। महागठबंधन में शामिल राजद ने विधानसभा चुनाव में एक सीट पर जीत हासिल की थी।
*भाजपा को एक नहीं अनेक सबक सीखने होंगे – झारखंड में भाजपा को भाजपा ने ही हराया*!पढ़े पूरी खबर बलबीर दत्त के कलम से
“विचित्र बात यह है कि भाजपा के कई नेताओं को झारखंड में हार का कारण समझ में नहीं आ रहा। समझ में नहीं आने का कारण जानकारी का अभाव ही कहा जायेगा। किसी भी युद्ध की तरह चुनाव-युद्ध में भी वस्तुस्थिति या जमीनी हकीकत की पूर्व जानकारी नहीं होने, अपनी कमजोरियों और विरोधी पक्ष की क्षमताओं का सही आकलन नहीं होने से रणनीति में जो गलतियां होती हैं उसका खमियाजा भुगतना ही पड़ता है, और यही झारखंड में भाजपा के साथ हुआ है*।”
*“झारखंड के वरिष्ठ नेताओं को झारखंड में पार्टी की भारी शिकस्त का अंदेशा नहीं था। मुख्यमंत्री के दंभ, पार्टी के गलत फैसलों, टिकटों के वितरण में घोर धांधली, अपने लोगों के टिकट अंधाधुंध ढंग से काटने और बाहर के अवांछनीय लोगों को टिकट देने से अनेक कार्यकर्ता और समर्थक नाराज हो गये या उदासीन हो गये। शहरी इलाकों में जहां भाजपा की पहुंच है, मतदान कम हुआ। राजधानी रांची में सबसे कम मतदान हुआ। पार्टी के उम्मीदवार को पिछली बार से करीब 16,000 वोट कम मिले*।”
बलबीर दत्त
भारतीय जनता पार्टी को हाल के दिनों में राज्य विधानसभाओं, विशेषत: झारखंड विधानसभा के चुनाव में झटका लगने के कटु अनुभव के बाद अपनी पूरी चुनावी रणनीति का पुनरावलोकन और उसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। जैसे किसी बीमारी को ठीक से समझने के लिए एक योग्य डाक्टर उसकी तह में जाने, रोग का निदान करने के बाद, इलाज की प्रक्रिया शुरू करता है, कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी को करना होगा।
जैसे इमरजेंसी (1975-77) के दौरान सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की सरकार की गलतियों और ज्यादतियों की जानकारी लोगों को मिलती जा रही थी, लेकिन बहुत-सी जानकारियां इमरजेंसी हटने के बाद मिलीं या ध्यान में आयीं। ठीक इसी प्रकार झारखंड में भाजपा की गलतियों की जानकारी चुनाव के दौर में लोगों को मिल रहीं थीं, लेकिन कई गलतियों की जानकारी चुनाव के बाद प्राप्त हुई। गलत फैसलों के दुष्परिणाम भी सामने आ गये।
*हार के वास्तविक कारण*
विचित्र बात यह है कि भाजपा के कई नेताओं को झारखंड में हार का कारण समझ में नहीं आ रहा। समझ में नहीं आने का कारण जानकारी का अभाव ही कहा जायेगा। किसी भी युद्ध की तरह चुनाव-युद्ध में भी वस्तुस्थिति या जमीनी हकीकत की पूर्व जानकारी नहीं होने, अपनी कमजोरियों और विरोधी पक्ष की क्षमताओं का सही पूर्व आकलन नहीं होने से रणनीति में जो गलतियां होती हैं, उसका खमियाजा भुगतना ही पड़ता है और यही झारखंड में भाजपा के साथ हुआ है।
पार्टी के कई नेता व प्रवक्ता, टीवी न्यूज चैनलों पर और अन्यत्र यह रटते जा रहे हैं कि उन्होंने डेवलपमेंट (विकास) के बहुत काम किये। यह दावा काफी हद तक सही है। लेकिन कुछ करणीम कार्य करने के साथ जो कार्य नहीं किये गये या गलतियां की गयीं, मतदाता उसकी अनदेखी नहीं करता। हमारे देश में आम मतदाता विकास के मुद्दों, आर्थिक नीतियों या घोषणापत्रों के आधार पर घर से वोट डालने नहीं निकलता। मतदान में अन्य कई फैक्टर भी प्रभावी भूमिका निभाते हैं, जिनमें निजी हिताहित और भावनात्मक मुद्दे भी शामिल रहते हैं। विधानसभा चुनावों में तो क्षेत्रीय दल या क्षेत्रीय मुद्दे मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित करने की स्थिति में होते हैं। तमिलनाडू जैसे कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां राष्ट्रीय दल अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं।
*जीत-हार का सटीक विश्लेषण जरूरी*
हमारे देश के राजनीतिज्ञों की यह खासियत है कि वे चुनावों में अपनी हार को अक्सर शालीनतापूर्वक और खुले दिल से स्वीकार नहीं करते। जनादेश को मान लेना तो एक प्रकार की मजबूरी है, लेकिन हार का वैज्ञानिक और तर्कसंगत विश्लेषण करना भी एक मजबूरी मान लिया जाये तो कोई हर्ज नहीं। बल्कि इसे एक फायदेमंद प्र्रक्रिया और परिपाटी माना जाना चाहिये। अपनी पराजय के लिए बहानेबाजी का आसरा लेना या दूसरों पर दोषारोपण करना स्वयं को छलने के बराबर है।
पराजय की सटीक व्याख्या और विश्लेषण के साथ ही विजय की भी सटीक व्याख्या और विश्लेषण होना चाहिए। कई बार ऐसा पाया गया है कि विजयी पार्टी ने खुद यह नहीं सोचा होता कि उसे इतना बड़ा जनादेश मिल जायेगा। झारखंड विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे जैसे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, धारा 370, राम मंदिर, एन.आर.सी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) और सी.ए.ए. (नागरिकता संशोधन कानून) आदि प्रभावी नहीं हो पाये हालांकि भाजपा ने इनका लाभ उठाने का प्रयास किया। दूसरी ओर इन मुद्दों का विरोध करनेवाले महागठबंधन के नेता यदि यह समझते हैं कि भाजपा की हार में यह भी फैक्टर थे तो उसे भी सही नहीं कहा जायेगा, क्योंकि धरातल पर ये मुद्दे नजर नही आये। धरातल पर केवल और केवल क्षेत्रीय व स्थानीय मुद्दे ही असरदार थे।
पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर या मनचाही अवधारणा के आधार पर कोई राजनीतिक बयान देना ख्याली पुलाव पकाने के बराबर है, जैसाकि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के उस बयान से जाहिर होता है जिसमें उन्होंने कहा कि झारखंड का जनादेश नागरिकता संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरुद्ध जनभावनाओं की अभिव्यक्ति है। दिल्ली में बैठे हुए केजरीवाल क्या यह मानते हैं कि झारखंड विधानसभा का चुनाव इन दोनों राष्ट्रीय मुुद्दों पर एक ‘रेफरेंडम’ (जनमतसंग्रह) था? वस्तुस्थिति यह है कि यहां ये कोई चुनावी मुद्दे नहीं थे।
वैसे भी नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद जब प्रतिक्रियाएं आनी आरंभ हुई तब तक झारखंड में आधा चुनाव हो चुका था। केजरीवाल को झारखंड में मुख्य राजनीतिक दल के रूप में उभरने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या उनके चुनाव के मुख्य मुद्दे यही थे?
इस प्रकरण में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव का बयान बहुत विवेकपूर्ण था। उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष दोनों हार जायें तो इसका अर्थ है कि सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। यह देखना भी जरूरी है कि स्थानीय नेताओं से कहां चूक हुई।
*गलत फैसलों का दुष्परिणाम*
कभी-कभी चुनाव में किसी पार्टी की एक ही गलती उसका पूरा खेल बिगाड़ देती है, लेकिन झारखंड में भाजपा से एक नहीं एक साथ कई गलतियां हुईं- स्ट्रेटेजी के मामले में और मतदाताओं को रिझाने के मामले में भी।
गलत फैसलों का ही एक परिणाम यह था कि भाजपा ने क्षेत्रीय से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व दिया। झारखंड के मतदाताओं ने मात्र छह माह पूर्व लोकसभा के चुनाव मे भाजपा की झोली भर दी थी। उसे 14 में से 12 सीटें मिलीं। लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति दोबारा विश्वास व्यक्त किया था। लोकसभा सीटों के अंतर्गत 57 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। चुनाव में 51 प्रतिशत वोट मिले थे। गठबंधन टूटने से 26 सीटों पर नुक्सान हुआ।
झारखंड में पार्टी की मशीनरी उतनी सक्रिय नहीं थी जितनी कि होनी चाहिए थी। जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय हवा-हवाई बातें ज्यादा हो रही थीं। पार्टी के कर्त्ता-धर्ता आत्मतुष्टि के मूड में थे और यह मानकर चल रहे थे कि मोदी जी की सभाएं हो जायेंगी तो सब ठीक हो जायेगा। हवा उनके पक्ष में हो जायेगी। जानकार लोगों का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री की 10 और राष्ट्रीय ‘अध्यक्ष अमित शाह’ की 11 रैलियां नहीं होती तो जो 25 सीटें मिलीं शायद वे भी नहीं मिलती। मुश्किल से आधी सीटें मिलती
झारखंड की राजधानी को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। वर्तमान विधायक और पूर्व मंत्री चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह लगातार छठी बार चुनाव जीत गये, लेकिन उन्हें मिलने वाले वोटों की संख्या घट गयी है।
*गठबंधन तोड़ना पड़ा भारी*
झारखंड में आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी भाजपा की सहयोगी पार्टी रही है। पिछली बार दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा था और बहुमत प्राप्त कर लिया था। इस बार सीटों के बंटवारे के विवाद को लेकर दोनों का गठबंधन टूट गया। गठबंधन के लिए आमतौर पर छोटी पार्टियां या क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा सीटों की मांग करती हैं और बड़ी पार्टी या राष्ट्रीय पार्टी ज्यादा सीटें देना नहीं चाहती। सौदेबाजी में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।
लेकिन समझदारी का तकाजा यही है कि कुछ कम-बेशी करके मामले को निपटा दिया जाये। इस बार गठबंधन नहीं होने से भाजपा और आजसू दोनों को भारी नुकसान हुआ। भाजपा की सीटें जहां 37 से घटकर 25 रह गयी, वहीं आजसू की सीटें 7 से घटकर 2 रह गयीं। लेकिन यदि इन पार्टियों को मिले कुल वोटों को जोड़ा जाये तो 16 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां दोनों पार्टियों को महागठबंधन से अधिक वोट मिले हैं। यानी गणित के हिसाब से पूर्ण बहुमत मिल सकता था। भाजपा ने ‘अबकी बार 65 पार’ का नारा लगाते हुए अपनी ताकत को जरूरत से ज्यादा आंक लिया था। यह तो वैसा ही हुआ कि ‘आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे।’
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव अभियान के दौर में ही वस्तुस्थिति को भांप लिया था, इसलिए उन्होंने चुनाव प्रचार के बीच में ही सार्वजनिक तौैर पर कह दिया था कि हम आजसू के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, इसका कोई तात्पर्य नहीं रह गया था।
*अपने नहीं बाहरी लोगों पर भरोसा*
भाजपा ने एक बहुत बड़ी गलती यह की कि चुनाव में बाहर के लोगों को दूसरे दलों से आये या लाये गये 16 लोगों को, पार्टी का टिकट दे दिया। इसका पार्टी के कार्यकर्ताओं, समर्थकों और आम लोगों में बहुत गलत मैसेज गया। प्रश्न है- क्या झारखंड में वर्षों से कार्यरत इस पार्टी को जो कई वर्ष सत्ता में रही उम्मीदवारों का टोटा पड़ गया था? मौजूदा 13 विधायकों का टिकट काट कर जिन लोगों को उम्मीदवार बनाया गया, उनमंे कई संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति थे या अवांछनीय तत्व थे। भाजपा में लाये गये इन दलबदलुओं में से कई उम्मीदवार चुनाव हार गये। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भाजपा की जीभ भी जल गयी और स्वाद भी नहीं आया।
हद तो तब हो गयी जब बिना किसी जाहिरी कारण के सरयू राय जैसे पुराने और दिग्गज पार्टी नेता का टिकट काट दिया गया। पार्टी ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को एकाधिकार दे दिया था। इन्होंने पार्टी का बंटाधार कर दिया। इनका इरादा यह था कि सभी विधायक इनके खेमे के हों, इनकी मुट्ठी में रहे।
सरयू राय को वह अपना प्रतिद्वन्दी मानते थे और निष्कंटक राज करना चाहते थे। सरयू राय ने बगावत कर दी और अपना पुराना निर्वाचन क्षेत्र छोड़कर रघुवर दास के ही निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और भारी बहुमत से उन्हें हरा दिया। सरयू राय की जीत के लिये भाजपा के ही कई कार्यकर्ताओं ने कार्य किया। इन्हें बागी करार दिया गया, लेकिन इससे पूरी स्थिति में क्या फर्क पड़ता है। जो होना था, हो गया। प्रश्न है- बगावत की नौबत क्यों आयी?
*वोट नहीं डालने वाले भाजपा के ही वोटर थे*
रांची निर्वाचन क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत राज्य में सबसे कम करीब 49 प्रतिशत रहा, जबकि यह राजधानी क्षेत्र है और यहां मतदाताओं में अधिकतम पढ़े-लिखे लोग हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आधे लोग वोट डालने ही नहीं आये। पार्टी के कार्यकर्ता हजारों लोगों को बूथों पर ही नहीं ला पाये। भाजपा का प्रभाव शहरी क्षेत्रों में अधिक है और शहरी क्षेत्रों में ही मतदान का प्रतिशतांश कम रहा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान 70 से 76 प्रतिशत तक हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में झारखंड मुक्ति मोर्चा का अच्छा-खासा प्रभाव है।
इस बार शहरी क्षेत्रों में व अन्यत्र जो लोग वोट डालने नहीं आये वे भाजपा के ही वोटर थे। ये लोग नाराज थे या उदासीन थे भाजपा को यह पता लगाने की जरूरत है। ऐसा बताया जाता है कि ये लोग नाराज भी थे और उदासीन भी थे। दोनों स्थितियां पार्टी के लिए हानिकर है।
*घर-घर मोदी, घर-घर रघुवर* !
जहां तक नाराजगी की बात है, यहां यह उल्लेख करना उपयुक्त होगा कि राजस्थान में 2018 में विधानसभा चुनाव में यह नारा बहुत चर्चित हुआ था- ‘मोदी तुमसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।’ ये लोग भाजपा या मोदी से नाराज नहीं थे, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनकी कार्यशैली और अक्खड़पन से नाराज थे। उन्होंने राजस्थान में भाजपा को हरा दिया। इन्हीं मतदाताओं ने नारे की सार्थकता 6 माह बाद लोकसभा चुनाव में सिद्ध कर दी जब राजस्थान से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर दिया। लोकसभा की 25 की 25 सीटें 2014 के चुनाव की तरह भाजपा की झोलों में डाल दी।
झारखंड के मामले में जहां राजस्थान के संदर्भ में नारे में ‘वसुंधरा’ शब्द है, वहां ‘रघुवर’ अंकित कर देने से मतदाताओं की भावना प्रकट हो जाती है। रघुवर दास ने ‘घर-घर मोदीह्ण की तरह ह्यघर-घर रघुवर’ का नारा दिया, जो फेल हो गया। शायद रघुवर दास ने अपने को छोटा मोदी समझ लिया था।
झारखंड में भाजपा हाई कमान की गलती यह थी कि उसने रघुवर दास को सरकार और संगठन दोनों के मामले में एकाधिकार दे दिया। तुलसीदास ने कहा है- प्रभुता पाइ काहि मद नाही। सत्ता का नशा बड़ा भयानक होता है। फिर निर्बाध सत्ता का कहना ही क्या। रघुवर दास को मनमानी करने का खूब मौका मिला। जो चाहा, सो किया। टिकट देने में जात-पात, सरकारी अफसरों के पदस्थापन में जात-पात। कई अच्छे अफसरों को हाशिये पर कर दिया गया।
विधानसभा चुनाव में जिसको चाहा, उसको टिकट दिया, जिसको चाहा उसे बाहर से ले आया गया, जिसको चाहा उसे छांट दिया गया। पार्टी में कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं रहा। जिससे सामूहिक निर्णय की प्रथा समाप्त हो गयी। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव (Election) नहीं, चयन (Selection) होने लगा। यह भी मुख्यमंत्री के विवेक पर छोड़ दिया गया। झारखंड में प्राय: सभी पार्टी अध्यक्ष मुख्यमंत्री की कठपुतली रहे हैं। पार्टी के पदधारियों का चयन भी मुख्यमंत्री ‘प्रसाद पर्यंत’ कर दिया गया।
रघुवर दास ने गृह व वित्त समेत सभी महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे हुए थे। झारखंड में पार्टी की सरकार का बंटाधार करने में मुख्यमंत्री के दो-तीन नजदीकी अफसरों का भी ‘महान योगदान’ रहा। ये भी अपने को छोटा सुलतान समझने लगे थे। इन्होंने भी खूब गुल खिलाये।
ब्रिटिश इतिहासकार लार्ड एक्टन का कहना था – Power corrupts and absolute power corrupts absolutely यानी सत्ताधिकार व्यक्ति को भ्रष्ट करता है और पूर्ण सत्ताधिकार व्यक्ति को पूर्णरूप से भ्रष्ट करता है। यह कथन प्रस्तुत मामले में पूरी तरह फिट बैठता है।
*आदिवासियों से मेल-जोल का अभाव*
झारखंड में रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री थे। इन्होंने राज्य के अंतर्वर्ती आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनसे मेल-जोल नहीं बढ़ाया। आदिवासी बहुत जजबाती होते हैं। ‘जल, जंगल, जमीन’ उनकी रग-रग में समाये रहते हैं। छोटानागपुर व संताल परगना काश्तकारी कानून में संशोधन कर विकास कार्यों के लिए आदिवासियों की जमीन लेने के प्रावधान से उनमें काफी विक्षोभ फैल गया। आदिवासियों को विश्वास में लेकर ही कानून में रद्दोबदल करना चाहिए था। यह बात अलग है कि राज्यपाल ने विधेयक को लौटा दिया। लेकिन इस प्रयास से आदिवासियों में गलत संदेश गया।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने झारखंड में इस तरह की शिकस्त की उम्मीद नहीं की थी। तो भी पार्टी के लिए राहत की बात यह है कि सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद उसके पास वोटों का अच्छा-खासा शेयर अब भी मौजूद है। यहां भाजपा को भाजपा ने ही हराया। पार्टी के गलत फैसलों के कारण पार्टी के नाराज व उदासीन कार्यकर्ता और समर्थक, वोट डालने के लिए नहीं पहुंचने वाले भाजपा के वोटर, बागी कार्यकर्ता व नेता- सबका संचित प्रभाव के कारण पार्टी की दुर्गति हुई।
*“झारखंड के वरिष्ठ नेताओं को झारखंड में पार्टी की भारी शिकस्त का अंदेशा नहीं था। मुख्यमंत्री के दंभ, पार्टी के गलत फैसलों, टिकटों के वितरण में घोर धांधली, अपने लोगों के टिकट अंधाधुंध ढंग से काटने और बाहर के अवांछनीय लोगों को टिकट देने से अनेक कार्यकर्ता और समर्थक नाराज हो गये या उदासीन हो गये। शहरी इलाकों में जहां भाजपा की पहुंच है, मतदान कम हुआ। राजधानी रांची में सबसे कम मतदान हुआ। पार्टी के उम्मीदवार को पिछली बार से करीब 16,000 वोट कम मिले*।”
बलबीर दत्त
भारतीय जनता पार्टी को हाल के दिनों में राज्य विधानसभाओं, विशेषत: झारखंड विधानसभा के चुनाव में झटका लगने के कटु अनुभव के बाद अपनी पूरी चुनावी रणनीति का पुनरावलोकन और उसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। जैसे किसी बीमारी को ठीक से समझने के लिए एक योग्य डाक्टर उसकी तह में जाने, रोग का निदान करने के बाद, इलाज की प्रक्रिया शुरू करता है, कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी को करना होगा।
जैसे इमरजेंसी (1975-77) के दौरान सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की सरकार की गलतियों और ज्यादतियों की जानकारी लोगों को मिलती जा रही थी, लेकिन बहुत-सी जानकारियां इमरजेंसी हटने के बाद मिलीं या ध्यान में आयीं। ठीक इसी प्रकार झारखंड में भाजपा की गलतियों की जानकारी चुनाव के दौर में लोगों को मिल रहीं थीं, लेकिन कई गलतियों की जानकारी चुनाव के बाद प्राप्त हुई। गलत फैसलों के दुष्परिणाम भी सामने आ गये।
*हार के वास्तविक कारण*
विचित्र बात यह है कि भाजपा के कई नेताओं को झारखंड में हार का कारण समझ में नहीं आ रहा। समझ में नहीं आने का कारण जानकारी का अभाव ही कहा जायेगा। किसी भी युद्ध की तरह चुनाव-युद्ध में भी वस्तुस्थिति या जमीनी हकीकत की पूर्व जानकारी नहीं होने, अपनी कमजोरियों और विरोधी पक्ष की क्षमताओं का सही पूर्व आकलन नहीं होने से रणनीति में जो गलतियां होती हैं, उसका खमियाजा भुगतना ही पड़ता है और यही झारखंड में भाजपा के साथ हुआ है।
पार्टी के कई नेता व प्रवक्ता, टीवी न्यूज चैनलों पर और अन्यत्र यह रटते जा रहे हैं कि उन्होंने डेवलपमेंट (विकास) के बहुत काम किये। यह दावा काफी हद तक सही है। लेकिन कुछ करणीम कार्य करने के साथ जो कार्य नहीं किये गये या गलतियां की गयीं, मतदाता उसकी अनदेखी नहीं करता। हमारे देश में आम मतदाता विकास के मुद्दों, आर्थिक नीतियों या घोषणापत्रों के आधार पर घर से वोट डालने नहीं निकलता। मतदान में अन्य कई फैक्टर भी प्रभावी भूमिका निभाते हैं, जिनमें निजी हिताहित और भावनात्मक मुद्दे भी शामिल रहते हैं। विधानसभा चुनावों में तो क्षेत्रीय दल या क्षेत्रीय मुद्दे मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित करने की स्थिति में होते हैं। तमिलनाडू जैसे कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां राष्ट्रीय दल अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं।
*जीत-हार का सटीक विश्लेषण जरूरी*
हमारे देश के राजनीतिज्ञों की यह खासियत है कि वे चुनावों में अपनी हार को अक्सर शालीनतापूर्वक और खुले दिल से स्वीकार नहीं करते। जनादेश को मान लेना तो एक प्रकार की मजबूरी है, लेकिन हार का वैज्ञानिक और तर्कसंगत विश्लेषण करना भी एक मजबूरी मान लिया जाये तो कोई हर्ज नहीं। बल्कि इसे एक फायदेमंद प्र्रक्रिया और परिपाटी माना जाना चाहिये। अपनी पराजय के लिए बहानेबाजी का आसरा लेना या दूसरों पर दोषारोपण करना स्वयं को छलने के बराबर है।
पराजय की सटीक व्याख्या और विश्लेषण के साथ ही विजय की भी सटीक व्याख्या और विश्लेषण होना चाहिए। कई बार ऐसा पाया गया है कि विजयी पार्टी ने खुद यह नहीं सोचा होता कि उसे इतना बड़ा जनादेश मिल जायेगा। झारखंड विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे जैसे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, धारा 370, राम मंदिर, एन.आर.सी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) और सी.ए.ए. (नागरिकता संशोधन कानून) आदि प्रभावी नहीं हो पाये हालांकि भाजपा ने इनका लाभ उठाने का प्रयास किया। दूसरी ओर इन मुद्दों का विरोध करनेवाले महागठबंधन के नेता यदि यह समझते हैं कि भाजपा की हार में यह भी फैक्टर थे तो उसे भी सही नहीं कहा जायेगा, क्योंकि धरातल पर ये मुद्दे नजर नही आये। धरातल पर केवल और केवल क्षेत्रीय व स्थानीय मुद्दे ही असरदार थे।
पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर या मनचाही अवधारणा के आधार पर कोई राजनीतिक बयान देना ख्याली पुलाव पकाने के बराबर है, जैसाकि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के उस बयान से जाहिर होता है जिसमें उन्होंने कहा कि झारखंड का जनादेश नागरिकता संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरुद्ध जनभावनाओं की अभिव्यक्ति है। दिल्ली में बैठे हुए केजरीवाल क्या यह मानते हैं कि झारखंड विधानसभा का चुनाव इन दोनों राष्ट्रीय मुुद्दों पर एक ‘रेफरेंडम’ (जनमतसंग्रह) था? वस्तुस्थिति यह है कि यहां ये कोई चुनावी मुद्दे नहीं थे।
वैसे भी नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद जब प्रतिक्रियाएं आनी आरंभ हुई तब तक झारखंड में आधा चुनाव हो चुका था। केजरीवाल को झारखंड में मुख्य राजनीतिक दल के रूप में उभरने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या उनके चुनाव के मुख्य मुद्दे यही थे?
इस प्रकरण में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव का बयान बहुत विवेकपूर्ण था। उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष दोनों हार जायें तो इसका अर्थ है कि सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। यह देखना भी जरूरी है कि स्थानीय नेताओं से कहां चूक हुई।
*गलत फैसलों का दुष्परिणाम*
कभी-कभी चुनाव में किसी पार्टी की एक ही गलती उसका पूरा खेल बिगाड़ देती है, लेकिन झारखंड में भाजपा से एक नहीं एक साथ कई गलतियां हुईं- स्ट्रेटेजी के मामले में और मतदाताओं को रिझाने के मामले में भी।
गलत फैसलों का ही एक परिणाम यह था कि भाजपा ने क्षेत्रीय से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व दिया। झारखंड के मतदाताओं ने मात्र छह माह पूर्व लोकसभा के चुनाव मे भाजपा की झोली भर दी थी। उसे 14 में से 12 सीटें मिलीं। लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति दोबारा विश्वास व्यक्त किया था। लोकसभा सीटों के अंतर्गत 57 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। चुनाव में 51 प्रतिशत वोट मिले थे। गठबंधन टूटने से 26 सीटों पर नुक्सान हुआ।
झारखंड में पार्टी की मशीनरी उतनी सक्रिय नहीं थी जितनी कि होनी चाहिए थी। जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय हवा-हवाई बातें ज्यादा हो रही थीं। पार्टी के कर्त्ता-धर्ता आत्मतुष्टि के मूड में थे और यह मानकर चल रहे थे कि मोदी जी की सभाएं हो जायेंगी तो सब ठीक हो जायेगा। हवा उनके पक्ष में हो जायेगी। जानकार लोगों का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री की 10 और राष्ट्रीय ‘अध्यक्ष अमित शाह’ की 11 रैलियां नहीं होती तो जो 25 सीटें मिलीं शायद वे भी नहीं मिलती। मुश्किल से आधी सीटें मिलती
झारखंड की राजधानी को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। वर्तमान विधायक और पूर्व मंत्री चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह लगातार छठी बार चुनाव जीत गये, लेकिन उन्हें मिलने वाले वोटों की संख्या घट गयी है।
*गठबंधन तोड़ना पड़ा भारी*
झारखंड में आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी भाजपा की सहयोगी पार्टी रही है। पिछली बार दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा था और बहुमत प्राप्त कर लिया था। इस बार सीटों के बंटवारे के विवाद को लेकर दोनों का गठबंधन टूट गया। गठबंधन के लिए आमतौर पर छोटी पार्टियां या क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा सीटों की मांग करती हैं और बड़ी पार्टी या राष्ट्रीय पार्टी ज्यादा सीटें देना नहीं चाहती। सौदेबाजी में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।
लेकिन समझदारी का तकाजा यही है कि कुछ कम-बेशी करके मामले को निपटा दिया जाये। इस बार गठबंधन नहीं होने से भाजपा और आजसू दोनों को भारी नुकसान हुआ। भाजपा की सीटें जहां 37 से घटकर 25 रह गयी, वहीं आजसू की सीटें 7 से घटकर 2 रह गयीं। लेकिन यदि इन पार्टियों को मिले कुल वोटों को जोड़ा जाये तो 16 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां दोनों पार्टियों को महागठबंधन से अधिक वोट मिले हैं। यानी गणित के हिसाब से पूर्ण बहुमत मिल सकता था। भाजपा ने ‘अबकी बार 65 पार’ का नारा लगाते हुए अपनी ताकत को जरूरत से ज्यादा आंक लिया था। यह तो वैसा ही हुआ कि ‘आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे।’
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव अभियान के दौर में ही वस्तुस्थिति को भांप लिया था, इसलिए उन्होंने चुनाव प्रचार के बीच में ही सार्वजनिक तौैर पर कह दिया था कि हम आजसू के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, इसका कोई तात्पर्य नहीं रह गया था।
*अपने नहीं बाहरी लोगों पर भरोसा*
भाजपा ने एक बहुत बड़ी गलती यह की कि चुनाव में बाहर के लोगों को दूसरे दलों से आये या लाये गये 16 लोगों को, पार्टी का टिकट दे दिया। इसका पार्टी के कार्यकर्ताओं, समर्थकों और आम लोगों में बहुत गलत मैसेज गया। प्रश्न है- क्या झारखंड में वर्षों से कार्यरत इस पार्टी को जो कई वर्ष सत्ता में रही उम्मीदवारों का टोटा पड़ गया था? मौजूदा 13 विधायकों का टिकट काट कर जिन लोगों को उम्मीदवार बनाया गया, उनमंे कई संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति थे या अवांछनीय तत्व थे। भाजपा में लाये गये इन दलबदलुओं में से कई उम्मीदवार चुनाव हार गये। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भाजपा की जीभ भी जल गयी और स्वाद भी नहीं आया।
हद तो तब हो गयी जब बिना किसी जाहिरी कारण के सरयू राय जैसे पुराने और दिग्गज पार्टी नेता का टिकट काट दिया गया। पार्टी ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को एकाधिकार दे दिया था। इन्होंने पार्टी का बंटाधार कर दिया। इनका इरादा यह था कि सभी विधायक इनके खेमे के हों, इनकी मुट्ठी में रहे।
सरयू राय को वह अपना प्रतिद्वन्दी मानते थे और निष्कंटक राज करना चाहते थे। सरयू राय ने बगावत कर दी और अपना पुराना निर्वाचन क्षेत्र छोड़कर रघुवर दास के ही निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और भारी बहुमत से उन्हें हरा दिया। सरयू राय की जीत के लिये भाजपा के ही कई कार्यकर्ताओं ने कार्य किया। इन्हें बागी करार दिया गया, लेकिन इससे पूरी स्थिति में क्या फर्क पड़ता है। जो होना था, हो गया। प्रश्न है- बगावत की नौबत क्यों आयी?
*वोट नहीं डालने वाले भाजपा के ही वोटर थे*
रांची निर्वाचन क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत राज्य में सबसे कम करीब 49 प्रतिशत रहा, जबकि यह राजधानी क्षेत्र है और यहां मतदाताओं में अधिकतम पढ़े-लिखे लोग हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आधे लोग वोट डालने ही नहीं आये। पार्टी के कार्यकर्ता हजारों लोगों को बूथों पर ही नहीं ला पाये। भाजपा का प्रभाव शहरी क्षेत्रों में अधिक है और शहरी क्षेत्रों में ही मतदान का प्रतिशतांश कम रहा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान 70 से 76 प्रतिशत तक हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में झारखंड मुक्ति मोर्चा का अच्छा-खासा प्रभाव है।
इस बार शहरी क्षेत्रों में व अन्यत्र जो लोग वोट डालने नहीं आये वे भाजपा के ही वोटर थे। ये लोग नाराज थे या उदासीन थे भाजपा को यह पता लगाने की जरूरत है। ऐसा बताया जाता है कि ये लोग नाराज भी थे और उदासीन भी थे। दोनों स्थितियां पार्टी के लिए हानिकर है।
*घर-घर मोदी, घर-घर रघुवर* !
जहां तक नाराजगी की बात है, यहां यह उल्लेख करना उपयुक्त होगा कि राजस्थान में 2018 में विधानसभा चुनाव में यह नारा बहुत चर्चित हुआ था- ‘मोदी तुमसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।’ ये लोग भाजपा या मोदी से नाराज नहीं थे, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनकी कार्यशैली और अक्खड़पन से नाराज थे। उन्होंने राजस्थान में भाजपा को हरा दिया। इन्हीं मतदाताओं ने नारे की सार्थकता 6 माह बाद लोकसभा चुनाव में सिद्ध कर दी जब राजस्थान से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर दिया। लोकसभा की 25 की 25 सीटें 2014 के चुनाव की तरह भाजपा की झोलों में डाल दी।
झारखंड के मामले में जहां राजस्थान के संदर्भ में नारे में ‘वसुंधरा’ शब्द है, वहां ‘रघुवर’ अंकित कर देने से मतदाताओं की भावना प्रकट हो जाती है। रघुवर दास ने ‘घर-घर मोदीह्ण की तरह ह्यघर-घर रघुवर’ का नारा दिया, जो फेल हो गया। शायद रघुवर दास ने अपने को छोटा मोदी समझ लिया था।
झारखंड में भाजपा हाई कमान की गलती यह थी कि उसने रघुवर दास को सरकार और संगठन दोनों के मामले में एकाधिकार दे दिया। तुलसीदास ने कहा है- प्रभुता पाइ काहि मद नाही। सत्ता का नशा बड़ा भयानक होता है। फिर निर्बाध सत्ता का कहना ही क्या। रघुवर दास को मनमानी करने का खूब मौका मिला। जो चाहा, सो किया। टिकट देने में जात-पात, सरकारी अफसरों के पदस्थापन में जात-पात। कई अच्छे अफसरों को हाशिये पर कर दिया गया।
विधानसभा चुनाव में जिसको चाहा, उसको टिकट दिया, जिसको चाहा उसे बाहर से ले आया गया, जिसको चाहा उसे छांट दिया गया। पार्टी में कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं रहा। जिससे सामूहिक निर्णय की प्रथा समाप्त हो गयी। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव (Election) नहीं, चयन (Selection) होने लगा। यह भी मुख्यमंत्री के विवेक पर छोड़ दिया गया। झारखंड में प्राय: सभी पार्टी अध्यक्ष मुख्यमंत्री की कठपुतली रहे हैं। पार्टी के पदधारियों का चयन भी मुख्यमंत्री ‘प्रसाद पर्यंत’ कर दिया गया।
रघुवर दास ने गृह व वित्त समेत सभी महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे हुए थे। झारखंड में पार्टी की सरकार का बंटाधार करने में मुख्यमंत्री के दो-तीन नजदीकी अफसरों का भी ‘महान योगदान’ रहा। ये भी अपने को छोटा सुलतान समझने लगे थे। इन्होंने भी खूब गुल खिलाये।
ब्रिटिश इतिहासकार लार्ड एक्टन का कहना था – Power corrupts and absolute power corrupts absolutely यानी सत्ताधिकार व्यक्ति को भ्रष्ट करता है और पूर्ण सत्ताधिकार व्यक्ति को पूर्णरूप से भ्रष्ट करता है। यह कथन प्रस्तुत मामले में पूरी तरह फिट बैठता है।
*आदिवासियों से मेल-जोल का अभाव*
झारखंड में रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री थे। इन्होंने राज्य के अंतर्वर्ती आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनसे मेल-जोल नहीं बढ़ाया। आदिवासी बहुत जजबाती होते हैं। ‘जल, जंगल, जमीन’ उनकी रग-रग में समाये रहते हैं। छोटानागपुर व संताल परगना काश्तकारी कानून में संशोधन कर विकास कार्यों के लिए आदिवासियों की जमीन लेने के प्रावधान से उनमें काफी विक्षोभ फैल गया। आदिवासियों को विश्वास में लेकर ही कानून में रद्दोबदल करना चाहिए था। यह बात अलग है कि राज्यपाल ने विधेयक को लौटा दिया। लेकिन इस प्रयास से आदिवासियों में गलत संदेश गया।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने झारखंड में इस तरह की शिकस्त की उम्मीद नहीं की थी। तो भी पार्टी के लिए राहत की बात यह है कि सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद उसके पास वोटों का अच्छा-खासा शेयर अब भी मौजूद है। यहां भाजपा को भाजपा ने ही हराया। पार्टी के गलत फैसलों के कारण पार्टी के नाराज व उदासीन कार्यकर्ता और समर्थक, वोट डालने के लिए नहीं पहुंचने वाले भाजपा के वोटर, बागी कार्यकर्ता व नेता- सबका संचित प्रभाव के कारण पार्टी की दुर्गति हुई।
पढे ठंड की खास पेशकस सतीश कुमार पांडेय के कलम से
*हाय रे ठंड जान लेकर ही छोड़ेगा क्या*
*सतीश पांडेय* प्रतापपुर (चतरा)पूस की रात प्रेमचंद की कहानी बहुत पहले पढा था जो इस दृश्य को देखने के बाद वह मानस पटल पर फिर से बिल्कुल ताजी हो जाती है।
जी हां मैं इसलिए यह दिखाना बताना चाह रहा हूं कि बढ़ रही ठंड और गिर रहे तापमान के बावजूद प्रखंड के पंचायत स्तर पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है ।
*कई पंचायत ऐसे हैं जहां कंबल तक वितरण नहीं किया गया है।*
अलाव जलने के बाद जहां बाबू लोग को कोर्ट पैट स्वेटर में होने के बावजूद अलाव ताप कर ठंड से बचने का प्रयास किया जाने का तस्वीर देखने को मिलती रही है। लेकिन ऐसे ऐसे कई गरीब है कई असहाय हैं जिनके तन पर चादर तक नहीं है और कुछ झुरी जलाकर -गिर रहे तापमान खुद को राहत देने का प्रयास करते देखे जा रहे हैं।
लोगों का कहना है कि जो कंबल मिली है वह इस ठंड के लिए ना काफी है।
फिर भी जो मिला तो ना से हा तो है।
कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि घर में कई सदस्य हैं ।
*(सदस्य संख्या 2 ,3, 4, 5, 6, 7 ,8 ,कुछ भी हो सकती है )*
और इन सभी सदस्यों पर एक कंबल मिलने से उस कंबल का उपयोग कौन करेगा जबकि बढ़ रही ठंड को लेकर कंबल की उपयोगिता सभी को है इसलिए यह कंबल व्यक्ति नहीं बल्कि परिवार स्तर पर वितरण किए जाने की जरूरत है।
*खैर जो हो हो ठंड बहुत है*
*सतीश पांडेय* प्रतापपुर (चतरा)पूस की रात प्रेमचंद की कहानी बहुत पहले पढा था जो इस दृश्य को देखने के बाद वह मानस पटल पर फिर से बिल्कुल ताजी हो जाती है।
जी हां मैं इसलिए यह दिखाना बताना चाह रहा हूं कि बढ़ रही ठंड और गिर रहे तापमान के बावजूद प्रखंड के पंचायत स्तर पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है ।
*कई पंचायत ऐसे हैं जहां कंबल तक वितरण नहीं किया गया है।*
अलाव जलने के बाद जहां बाबू लोग को कोर्ट पैट स्वेटर में होने के बावजूद अलाव ताप कर ठंड से बचने का प्रयास किया जाने का तस्वीर देखने को मिलती रही है। लेकिन ऐसे ऐसे कई गरीब है कई असहाय हैं जिनके तन पर चादर तक नहीं है और कुछ झुरी जलाकर -गिर रहे तापमान खुद को राहत देने का प्रयास करते देखे जा रहे हैं।
लोगों का कहना है कि जो कंबल मिली है वह इस ठंड के लिए ना काफी है।
फिर भी जो मिला तो ना से हा तो है।
कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि घर में कई सदस्य हैं ।
*(सदस्य संख्या 2 ,3, 4, 5, 6, 7 ,8 ,कुछ भी हो सकती है )*
और इन सभी सदस्यों पर एक कंबल मिलने से उस कंबल का उपयोग कौन करेगा जबकि बढ़ रही ठंड को लेकर कंबल की उपयोगिता सभी को है इसलिए यह कंबल व्यक्ति नहीं बल्कि परिवार स्तर पर वितरण किए जाने की जरूरत है।
*खैर जो हो हो ठंड बहुत है*
झारखंड बनने के बाद चतरा जिला से सिर्फ सत्यानंद भोक्ता ही मंत्री बने हैं,जिले में खुशी की लहर,देखे वीडियो कैसे नाच कर खुशी इजहार करते है ग्रामीण
चतरा:-झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने पर महागठबंधन के कार्यकर्ताओं में खुशी देखी गई। हेमंत के शपथ लेते ही शहर में कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। ढोल-नगाड़े बजाकर खुशी का इजहार किया। कार्यकर्ताओं द्वारा पटाखे छोड़े गए। महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने कहा कि हेमंत के नेतृत्व में राज्य का चहुंमुखी विकास होगा। महागठबंधन की सरकार सकारात्मक सोच वाली है। इसलिए कांग्रेस-झामुमो व राजद के मंत्री जनता का विश्वास जीतने में कामयाब होगी।वही सत्यानंद भोक्ता को मंत्री बनने पर जिले के जनता काफी खुश नजर आ रहे हैं।ग्रामीणों का कहना है कि चतरा में जितने भी विधायक बने हैं, लेकिन सत्यानंद भोक्ता जैसे कोई विधायक नही बन सके हैं।दिभा मुहल्ला निवासी विजय कुमार चौबे ने कहा कि यह चतरा का सौभाग्य है कि जब से झारखंड बना है ,उस समय से चतरा जिला से
पति को शक था, पत्नी किसी लड़के से करती है प्रेम ,पत्नी की किया हत्या
चक्रधरपुर : चक्रधरपुर थाना अंतर्गत बुढ़ीगोड़ा चर्च के समीप गांव के युवक ने अपनी ही पत्नी की हत्या शक के आधार पर कर दी। पति को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। जैसे ही आरोपित को चक्रधरपुर थाना लाया गया उसकी तबीयत बिगड़ गई। जिसके बाद उसे इलाज के लिए अनुमंडल अस्पताल में भर्ती कराया गया। जानकारी के अनुसार बुढ़ीगोड़ा चर्च के पीछे रहने वाले रामराय पुरती उर्फ संजय शनिवार की रात अपनी पत्नी दो बच्चियों की मां कंचवती पुरती (30) की गले में फंदा लगा कर हत्या कर दी। इसके बाद इसे आत्महत्या का रूप देने के लिए घर के लकड़ी में टांग दिया। सुबह इसकी सूचना मिलने पर गांव वालों का जुटान हुआ। ग्रामीणों ने देखा कि महिला का शव जमीन पर है, लेकिन रस्सी गले में फंसी है और वह रस्सी घर की छप्पर के लकड़ी में टंगी है। बताया जाता है कि पति को शक था कि पत्नी किसी लड़के से बात करती है। इसी शक के आधार पर ही उसने पत्नी की हत्या कर दी। इधर, मामले की जानकारी मिलने पर चक्रधरपुर थाना प्रभारी प्रवीण कुमार ने पुलिस बल के साथ घटनास्थल पहुंचकर मामले की छानबीन की। ग्रामीणों से पूछताछ करने और शव देखने के बाद पुलिस ने महिला की हत्या की आशंका जताई। वहीं पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर अनुमंडल अस्पताल में पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजन को सौंप दिया। बताया जाता है कि महिला के मायके वाले मनोहरपुर से भी पहुंचे। उन्होंने भी घटना स्थल की फोटो देखने के बाद हत्या करने का आशंका जताई है।
दो बच्चियों की मां थी मृतका
मृतक महिला की दो छोटी बच्चियां आसाय पुरती (5) तथा अनिशा पुरती (2.6) है। महिला का पति रामराय पुरती मजदूरी करता था। जबकि मृतक कंचवती पुरती गृहिणी थी। बताया जाता है कि पति नशा भी खूब करता है।
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
जिस स्थिति में शव मिला है और ग्रामीणों से बातचीत में पता चला है, उससे महिला की हत्या होने की आशंका है। फिलहाल शक के आधार पर पति को हिरासत में लिया गया है। जल्द ही सच्चाई का भी पता चल जाएगा।
- प्रवीण कुमार, थाना प्रभारी चक्रधरपुर।
रैन बसेरा का औचक निरीक्षण
चाईबासा : जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव कुमारी जीऊ एवं नगरपालिका के कार्यपालक पदाधिकारी अभय कुमार झा ने शनिवार की रात चाईबासा शहर में स्थित शेल्टर होम व रैन बसेरा का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के क्रम में उनके द्वारा बाबा मंदिर के समीप स्थित रैन बसेरा, अमला टोला शनि मंदिर के सामने स्थित रैन बसेरा, नदी किनारे स्थित रैन बसेरा का निरीक्षण किया।
65 लाख से बन रहा है रैन बसेरा
निरीक्षण के क्रम में यहां पाई गई त्रुटियों के संदर्भ में कुमारी जीऊ ने कार्यपालक पदाधिकारी को आवश्यक दिशा-निर्देश दिया। वही कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा मंगला हाट के पीछे 65 लाख रुपये की लागत से बन रहे रैन-बसेरा के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उसे चालू होने में अभी कम से कम से कम एक माह का समय और लगेगा। उल्लेखनीय है कि उक्त रैन-बसेरा के बन जाने से लगभग 100 लोगों के ठहरने की व्यवस्था हो जाएगा।
इस कड़ाके के ठंड में कोई खुले आसमान में नही रहे:-कुमारी जीऊ
इस संबंध में जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव कुमारी जीऊ का कहना है कि एक टीम बनाया गया है।उक्त टीम को यह देखना है कि इस कड़ाके की ठंड में कोई भी व्यक्ति जो बेघर हो फुटपाथ में या किसी दुकान या किसी के दरवाजे के फर्श पर सोया हुआ तो नहीं है। वैसी स्थिति में उनकी पहचान कर उन्हें पास के रैन-बसेरा या शेल्टर होम में पहुंचाया जाना है ताकि उन्हें इस कड़ाके की ठंड से बचाया जा सके। यह कार्यक्रम आगे भी लगातार जारी रहेगा
कम्बल का हुआ वितरण
जांच टीम के द्वारा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, गाड़ीखाना, मधु बाजार, सब्जी मार्केट के पीछे स्थित झुग्गी-झोपड़ी में भी जाया गया एवं नगरपालिका के सहयोग से जरूरतमंदों को कंबल आदि का भी वितरण किया गया। उक्त टीम में जिला विधिक सेवा प्राधिकार के पैनल अधिवक्ता राजाराम गुप्ता, बालाजी बारीक एवं पैरा लीगल वालंटियर मोहम्मद शमीम, उदय शंकर प्रसाद, संजय निषाद, हेमराज निषाद, अरुण विश्वकर्मा, रविकांत ठाकुर, स्नेहलता सांडिल, रत्ना चक्रवर्ती, कोलाय तियु व संजीत कुमार गुप्ता के अलावे चाईबासा नगर पालिका के काफी संख्या में अधिकारी एवं कर्मचारी शामिल थे।
रैन बसेरा का औचक निरीक्षण
रैन बसेरा का औचक निरीक्षण
चाईबासा : जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव कुमारी जीऊ एवं नगरपालिका के कार्यपालक पदाधिकारी अभय कुमार झा ने शनिवार की रात चाईबासा शहर में स्थित शेल्टर होम व रैन बसेरा का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के क्रम में उनके द्वारा बाबा मंदिर के समीप स्थित रैन बसेरा, अमला टोला शनि मंदिर के सामने स्थित रैन बसेरा, नदी किनारे स्थित रैन बसेरा का निरीक्षण किया।
65 लाख से बन रहा है रैन बसेरा
निरीक्षण के क्रम में यहां पाई गई त्रुटियों के संदर्भ में कुमारी जीऊ ने कार्यपालक पदाधिकारी को आवश्यक दिशा-निर्देश दिया। वही कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा मंगला हाट के पीछे 65 लाख रुपये की लागत से बन रहे रैन-बसेरा के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उसे चालू होने में अभी कम से कम से कम एक माह का समय और लगेगा। उल्लेखनीय है कि उक्त रैन-बसेरा के बन जाने से लगभग 100 लोगों के ठहरने की व्यवस्था हो जाएगा।
इस कड़ाके के ठंड में कोई खुले आसमान में नही रहे:-कुमारी जीऊ
इस संबंध में जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव कुमारी जीऊ का कहना है कि एक टीम बनाया गया है।उक्त टीम को यह देखना है कि इस कड़ाके की ठंड में कोई भी व्यक्ति जो बेघर हो फुटपाथ में या किसी दुकान या किसी के दरवाजे के फर्श पर सोया हुआ तो नहीं है। वैसी स्थिति में उनकी पहचान कर उन्हें पास के रैन-बसेरा या शेल्टर होम में पहुंचाया जाना है ताकि उन्हें इस कड़ाके की ठंड से बचाया जा सके। यह कार्यक्रम आगे भी लगातार जारी रहेगा
कम्बल का हुआ वितरण
जांच टीम के द्वारा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, गाड़ीखाना, मधु बाजार, सब्जी मार्केट के पीछे स्थित झुग्गी-झोपड़ी में भी जाया गया एवं नगरपालिका के सहयोग से जरूरतमंदों को कंबल आदि का भी वितरण किया गया। उक्त टीम में जिला विधिक सेवा प्राधिकार के पैनल अधिवक्ता राजाराम गुप्ता, बालाजी बारीक एवं पैरा लीगल वालंटियर मोहम्मद शमीम, उदय शंकर प्रसाद, संजय निषाद, हेमराज निषाद, अरुण विश्वकर्मा, रविकांत ठाकुर, स्नेहलता सांडिल, रत्ना चक्रवर्ती, कोलाय तियु व संजीत कुमार गुप्ता के अलावे चाईबासा नगर पालिका के काफी संख्या में अधिकारी एवं कर्मचारी शामिल थे।
थानेदार ने की अपने सहकर्मी पुलिस पदाधिकारियों के साथ बैठक
*।। जन-सामान्य के साथ मित्रवत व्यवहार करें- थाना प्रभारी मधुसुदन मोदक।*
।।थानेदार ने की अपने सहकर्मी पुलिस पदाधिकारियों के साथ बैठक।।
चाईबासा: जगन्नाथपुर थाना परिसर में थाना प्रभारी मधुसूदन मोदक ने अपने सहकर्मी पुलिस पदाधिकारी एवं पुलिसकर्मियों के साथ रविवार को एक आवश्यक बैठक किये। बैठक में थाना प्रभारी ने थाना में उपस्थित सभी पुलिस पदाधिकारियो एवं पुलिसकर्मियों को शांतिपूर्ण ओर निष्पक्ष विधानसभा चुनाव सम्पन्न करवाने को लेकर धन्यवाद देते हुए कहा कि हम सब ऐसे ही टीम भावना के साथ काम करें ताकि थाना संबंधी हर कार्य शांतिपूर्ण रूप से सम्पन्न हो सके। उन्होंने कहा कि नववर्ष के उपलक्ष्य में गस्ती के दौरान चौकस रहे तथा पिकनिक स्थलों में पिकनिक मनाने के लिए आने वाले सभी आगन्तुक लोगो के साथ मधुर ओर शालीनतापूर्वक व्यवहार करते हुए अपने कर्त्तव्य का निर्वाहन करे। श्री मोदक ने थाना के पदाधिकारियों को निर्देश दिए कि कांड में अभियुक्तों की गिरफ्तारी करें, कांड दैनिकी अद्यतन करें ताकि कांड का निष्पादन सही समय पर किया जाए। माननीय न्यायालय से निर्गत सभी प्रकार के वारंट, इस्तेहार, कुर्की का निष्पादन सही समय पर करें। वरीय पदाधिकारियों से जो भी आदेश, दिशा-निर्देश एवं जांच की जिम्मेदारी मिलती है, उनका निष्पादन समय पर करें, ताकि वरीय पदाधिकारी को ससमय प्रतिवेदन भेजा जा सके। मोदक ने जन-सामान्य के साथ मित्रवत व्यवहार करने, बुजुर्ग एवं महिलाओं का सम्मान करने, गस्ती के दौरान बैंक चैकिंग, पेट्रोल पंप चे¨कग एवं वाहन चे¨कग करने का भी निर्देश दिया। बैठक में अवर निरीक्षक देवशाई भगत, सहायक अवर निरीक्षक उमेश प्रसाद, नंदकिशोर सिंह, तारकनाथ सिह, दिलीप कुमार, पन्नालाल महथा व सोमाय टुडू, हवलदार जोगेश्वर मेहता, चालक प्रकाश बेहरा, मुंशी बिल्लु महतो एवं पुलिस बल शामिल थे।
।।थानेदार ने की अपने सहकर्मी पुलिस पदाधिकारियों के साथ बैठक।।
चाईबासा: जगन्नाथपुर थाना परिसर में थाना प्रभारी मधुसूदन मोदक ने अपने सहकर्मी पुलिस पदाधिकारी एवं पुलिसकर्मियों के साथ रविवार को एक आवश्यक बैठक किये। बैठक में थाना प्रभारी ने थाना में उपस्थित सभी पुलिस पदाधिकारियो एवं पुलिसकर्मियों को शांतिपूर्ण ओर निष्पक्ष विधानसभा चुनाव सम्पन्न करवाने को लेकर धन्यवाद देते हुए कहा कि हम सब ऐसे ही टीम भावना के साथ काम करें ताकि थाना संबंधी हर कार्य शांतिपूर्ण रूप से सम्पन्न हो सके। उन्होंने कहा कि नववर्ष के उपलक्ष्य में गस्ती के दौरान चौकस रहे तथा पिकनिक स्थलों में पिकनिक मनाने के लिए आने वाले सभी आगन्तुक लोगो के साथ मधुर ओर शालीनतापूर्वक व्यवहार करते हुए अपने कर्त्तव्य का निर्वाहन करे। श्री मोदक ने थाना के पदाधिकारियों को निर्देश दिए कि कांड में अभियुक्तों की गिरफ्तारी करें, कांड दैनिकी अद्यतन करें ताकि कांड का निष्पादन सही समय पर किया जाए। माननीय न्यायालय से निर्गत सभी प्रकार के वारंट, इस्तेहार, कुर्की का निष्पादन सही समय पर करें। वरीय पदाधिकारियों से जो भी आदेश, दिशा-निर्देश एवं जांच की जिम्मेदारी मिलती है, उनका निष्पादन समय पर करें, ताकि वरीय पदाधिकारी को ससमय प्रतिवेदन भेजा जा सके। मोदक ने जन-सामान्य के साथ मित्रवत व्यवहार करने, बुजुर्ग एवं महिलाओं का सम्मान करने, गस्ती के दौरान बैंक चैकिंग, पेट्रोल पंप चे¨कग एवं वाहन चे¨कग करने का भी निर्देश दिया। बैठक में अवर निरीक्षक देवशाई भगत, सहायक अवर निरीक्षक उमेश प्रसाद, नंदकिशोर सिंह, तारकनाथ सिह, दिलीप कुमार, पन्नालाल महथा व सोमाय टुडू, हवलदार जोगेश्वर मेहता, चालक प्रकाश बेहरा, मुंशी बिल्लु महतो एवं पुलिस बल शामिल थे।
जगन्नाथपुर पुलिस ने घरों में चोरी करने वाले एक चोर को गिरफ्तार कर भेजा जेल
गिरफ्तार चोर की चेहरा छुपाया हुआ है। |
11वे मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन, पूर्व कृषिमंत्री सत्यानंद भोक्ता ने भी लिये मंत्री पद का शपथ
रांची:-झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने शपथ ली है। राज्यपाल द्रौपदी मूर्म ने रविवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में हेमंत सोरेन को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। सीएम हेमंत सोरेन के साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और राजद के सत्यानंद भोक्ता ने भी मंत्री पद की शपथ ली।
इस दौरान मंच पर देश के तमाम दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगा रहा। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, स्टालिन, शरद यादव, सीताराम येचुरी, तरुण गोगोई, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल समेत कई भाजपा विरोधी चेहरे एकसाथ नजर आए।
मुख्यमंत्री की ओर से राजभवन को तीन मंत्रियों को शपथ दिलाने के लिए सूची भेजी गई थी। समझा जा रहा है कि खरमास के बाद हेमंत मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, जिसमें सभी नामों पर फैसला होगा। फिलहाल कांग्रेस से पांच, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से छह और राजद से एक को मंत्रिमंडल में शामिल करने के फॉर्मूले पर महागठबंधन में सहमति बनी है।
इस बहाने विपक्ष ने पूरी एकजुटता दिखाते हुए शक्ति प्रदर्शन किया। देशभर में एनआरसी, एनपीआर और नागरिकता संशोधन कानून पर विरोध के बीच यह समाराेह मोदी सरकार के धुर विरोधियों के लिए बड़ा मौका साबित हुआ, जहां वे एक साथ मिलकर केंद्र को अपनी ताकत का अहसास करा गए।
झारखंड में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर चुनावों में झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की, इसके बाद देशभर के भाजपा विरोधी दिग्गज रविवार को हेमंत सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने रांची पहुंचे। यहां बीती रात से ही अतिथियों के आने का सिलसिला जारी रहा।
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प्रतापपुर {चतरा} :-उज्वल भविष्य की कामना करते-करते एक बार फिर एक बेटी की जिंदगी समाप्त हो गया है।जबकि इससे पहले भी कई छात्राएं रांची में पढ़...