पढे ठंड की खास पेशकस सतीश कुमार पांडेय के कलम से

*हाय रे ठंड जान लेकर ही छोड़ेगा क्या*

*सतीश पांडेय* प्रतापपुर (चतरा)पूस की रात प्रेमचंद की कहानी बहुत पहले पढा था जो इस दृश्य को देखने के बाद वह मानस पटल पर  फिर से बिल्कुल ताजी हो जाती है।

 जी हां मैं इसलिए यह दिखाना बताना चाह रहा हूं कि बढ़ रही ठंड और गिर रहे तापमान के बावजूद प्रखंड के पंचायत स्तर पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है ।

*कई पंचायत ऐसे हैं जहां कंबल तक वितरण नहीं किया गया है।*

 अलाव जलने के बाद जहां बाबू लोग को कोर्ट पैट  स्वेटर में होने के बावजूद अलाव ताप कर  ठंड से बचने का प्रयास किया जाने का तस्वीर देखने को मिलती रही है। लेकिन ऐसे ऐसे कई गरीब है कई असहाय हैं जिनके तन पर चादर तक नहीं है और कुछ झुरी जलाकर -गिर रहे तापमान खुद को राहत देने का प्रयास करते देखे जा रहे हैं।
लोगों का कहना है कि जो कंबल मिली है वह इस ठंड के लिए ना काफी है।
 फिर भी जो मिला  तो ना से हा तो है।

कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि घर में कई सदस्य हैं ।
*(सदस्य संख्या 2 ,3, 4, 5, 6, 7 ,8 ,कुछ भी हो सकती है )*

और इन सभी सदस्यों पर एक कंबल मिलने से उस कंबल का उपयोग कौन करेगा जबकि बढ़ रही ठंड को लेकर कंबल की उपयोगिता सभी को है इसलिए यह कंबल व्यक्ति नहीं बल्कि परिवार स्तर पर वितरण किए जाने की जरूरत है।
*खैर जो हो हो ठंड बहुत है*

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