मूलभूत सूविधाओं से आज भी कोसों दूर मयूरहंड प्रखंड
चतरा/मयूरहंड(जयशंकर प्रसाद वर्मा):-आजादी के उनहत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी मयूरों का बाग कहा जाने वाला मयूरहंड प्रखंड राजनेताओं और सरकारी बाबूओं कि उपेक्षा का दंश झेल रहा है।विडम्बनाओं कि दूश्वारियों कि वजह से आज भी प्रखंड का हर एक हिस्सा संकटों व मुसीबतों के बीच पीस रहा है।और राजनेता व सरकारी बाबू आंखें बंद कर खामोश हैं।यहां शिक्षा व्यवस्था,सडकों की नारकीय स्थिति और चिकित्सा व्यवस्था बदहाली के दौर से गूजर रहा है।प्रखंड के लोग कहते हैं सिमरिया विस का विधायक व चतरा लोकसभा के सांसद मयूरहंड के एकतरफा जनमत से तय हो जाता है कि कौन होगा।बावजूद इसके हम बुनियादी सूविधाओं के घोर अभाव का सामना कर रहे हैं।स्थानीय लोग बताते हैं कि जब चूनाव का समय आता है तो राजकीय से लेकर राष्ट्रिय स्तर के राजनेता मयूरहंड कि गलियों में वोट कि खातिर खाक छानते फिरते हैं। ये चूनावी सभाओं में बडे-बडे वादे करते हैं,चूनाव के दौरान यहां तक कह देते हैं कि मैं हार जाऊं या जीत जाऊं कोई फर्क नहीं पडता है,यहां के लोगों कि शानदार स्वागत का मैं कायल हो गया,अब मयूरों का बाग उपेक्षित नहीं रहेगा,लेकिन चूनाव के परिणाम आ जाने के बाद जीत का सेहरा अपने सर बांधने वाला विधायक हो या सांसद या फिर हार का कडवा स्वाद चखने वाले तमाम उम्मीदवार अपना रंग बदलने में गिरगिट को भी मात दे जाता है।मयूरहंड इनके दिमाग के नक्शे से हट जाता है,यहां के लोगों को हर राजनीतिक दल के जीते हुए विधायक व सांसद के द्वारा आश्वासन जैसे पहाडों के चोटी पर बिठाकर कर औंधे मूंह गिरने के लिए हर बार धकेला गया है आर्थात भरोषे में लाकर ठगा गया है।मयूरहंड क्षत्रिय बहूल क्षेत्र होने कि वजह से यहां के क्षत्रियों को लगा कि मयूरहंड का विकास करने के लिए प्रंखड बनाना अति आवश्यक है।ओर फिर क्या था हर किसी के मूंह से निकलने लगा मयूरहंड को प्रखंड बनना चाहिए।लोगों का जमावडा कारवां में बदल गया।दलगत व जातिवाद के भावनाओं से निकलकर सभी दल के नेता और आम-अवाम जातिवाद के भम्र को सीने में दबा कर एक मंच पर आ खडे हुए।इनका मकसद अब इनके आंखों में झलकने लगा था ।तकरीबन दस वर्षों तक मयूरहंड को प्रखंड का दर्जा दिलाने कि खातिर यहां के लोगों ने आंदोलन किया तब जाकर 12:11:2008 को तत्कालिन मुख्यमंत्री (JMM ) श्री शिबू सोरेन ने मयूरहंड वासियों को प्रखंड का तोहफा देकर इतिहास के पन्नों में इसे अपने उपलब्धि के रिकार्ड में शामिल कर लिया।और मयूरहंड को प्रखंड का दर्जा प्राप्त हो गया।लेकिन विकास यहां एक जहमत बनकर प्रखंड वासियों के गले में अटक गया है।अब देखना यह है कि बूनियादी सूविधओं का सूर्योदय कब होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें