चतरा का बरुरा शरीफ मजार जहाँ लगता है,बड़े-बड़े भूतो का मेला ,बड़े-बड़े भुत यहाँ आकर टेकते है,अपने घुटने , शैतानी शक्क्तिओ से सताए लोगो को यहाँ पर मिलती है,रूहानी ताकतों से मुक्ति , आखिर क्या है,इस मज़ार का राज ।

चतरा का बरुरा शरीफ मजार जहाँ लगता है,बड़े-बड़े भूतो का मेला ,बड़े-बड़े भुत यहाँ आकर टेकते है,अपने घुटने , शैतानी शक्क्तिओ से सताए लोगो को यहाँ पर मिलती है,रूहानी ताकतों से मुक्ति , आखिर क्या है,इस मज़ार का राज ।


चतरा:-तीन तरफ से नदी,जंगल एवं पहाड़ो से घिरा आमिर अली शाह का बरुरा शरीफ मजार प्रतापपुर प्रखण्ड मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है । यह मजार 200 वर्ष पुराना है । पौराणिक कथाओ के अनुसार आमिर अली शाह काबुल के एक प्रसिद्ध फ़क़ीर हुआ करते थे,जो आज से ढाई सौ वर्ष पहले काबुल से घूमते-फिरते इस स्थान पर पहुँचे और फिर यहाँ उन्होंने अपना आसन जमा लिया । बाबा अपने जीवन काल में इलाके के लोगो के लिए एक फ़रिश्ते के समान साबित हुए । प्राकृतिक आपदा हो या फिर कोई जानलेवा बीमारी बाबा मिन्टो में ही सभी दुःख तकलीफो से लोगो को मुक्क्ति दिलवा देते थे,खास कर वैसे लोग जिन्हे शैतानी शक्क्तिओ ने अपने शिकंजे में जकड रखा है,उसे यहाँ की मिट्टी पर लाते ही उनमे एक अजीब सी हरकत होने लगती है और देखते ही देखते पीडितो को रूहानी ताकतों से मुक्ति मिल जाती है ।
 इलाके के लोगो की माने तो यहाँ अदृश्य शक्क्तिओ का करिश्मा होता है,यानी कब्र में सोए हुए बाबा आमिर अली शाह के सैकड़ो सिपाही हमेशा यहाँ अदृश्य रूप में तैनात रहते है,जो भुत-प्रेत जैसी रूहानी शक्क्तिओ पर भारी पड़ते है । बाबा के अदृश्य सैनिको द्वारा रूहानी शक्क्तिओ को यहाँ हमेशा के लिए गुलाम बना लिया जाता है,या फिर कब्र में सोए बाबा उन्हे अपने अदृश्य शक्क्तिओ से जला डालते है । इस मजार की ख्याति सिर्फ इसी इलाके भर नहीं है,यहाँ देश के अलग-अलग राज्यों से आकर हर धर्म हर समुदाय के लोग बाबा के मजार पर शीश झुकाकर अपनी-अपनी मन्नते माँगते है,और मन्नते पूरी होने पर पुनः मजार पर आकर चादर चढ़ाना नहीं भूलते । रामनवमी के चैत महीने में यहाँ नौ दिनों तक चलने वाले एक बड़े मेले का भी आयोजन किया जाता है । घोर नक्सल प्रभावित इलाका होने के वावजूद बाबा के भक्त्तो के उत्त्साह में कोई कमी नहीं आती है । इस मजार के बारे में एक मान्यता यह भी है,कि जिस समय बाबा आमिर अली शाह जिन्दा थे,उस वक़्त लिपता जमीन्दार एवं मनातू जमींदार के बीच भूमि विवाद चल रहा था,बाबा के लाख समझाने-बुझाने के बाद भी दोनों जमीन्दार नहीं माने मामला न्यायलय तक जा पहुँचा जिसमे लिपता जमीन्दार की ओर से बाबा भी गवाह बने उस वक़्त यह मामला हजारीबाग न्यायलय में चल रहा था,पर फैसला आने से कुछ माह पूर्व ही बाबा आमिर अली शाह ने अपने जीवित अवस्था में अपनी देख-रेख में ही कब्र खुदवाकर जिन्दा समाधि ले लिया,और निश्चित समय आने पर बाबा हजारीबाग न्यायलय सशरीर उपस्थित होकर न सिर्फ अपना बयाँन दर्ज करवाया,बल्कि अपना हस्ताक्षर भी किया । तभी से इसी प्रसिद्धि के तर्ज पर बाबा की प्रसिद्धि और भी अधिक बढ़ गया । खैर सच्चाई जो भी हो लेकिन आज भी इस मजार पर हजारों लोगों का भरोषा कायम है।



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