नाली जीर्णोद्धार नहीं होने से हजारों एकड़ भूमि बंजर होने के कगार पर

 *जीर्णोद्धार का बाट जो रहा है प्राचीन काल से निर्मित नाली*

नाली जीर्णोद्धार नहीं होने से हजारों एकड़ भूमि बंजर होने के कगार पर

 मयूरहंड। दूरदर्शी सोंच हमारे पूर्वज कि भी थी।फर्क सिर्फ इतना है की आज प्रचार प्रसार हो रहा है उस समय ऐसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी।जिसके कारण पुर्वजों द्वारा किया गया उतकृष्ट कार्य भी जमीन दोज होकर रह गया। भारत एक कृषि प्रधान देश है।जहां कृषि को बढावा देने के लिए कई जन कल्याणकारी योजनाएं संचालित किया जा रहा है।जैसे जल संग्रहण के लिए तालाबों की गहरी करन डोभा का निर्माण चेक डेम का निर्माण करना शामिल है।परंतु इन तलाबों डोभा व चेकडेमो में वर्षा का पानी ले जाने कि कोई समुचित ब्यवस्था नहीं रहने से किसानों को उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।ज्ञात हो कि मयूरहंड सीमाने से निकालकर बेलखोरी सिमाना होते दिग्ही व मखरौल तक नाली का निर्माण पुर्वजों द्वारा किया गया था।जो लगभग पांच छ:किलोमीटर दुरी से लाया गया है।जिससे बरसात के दिनों में बहने वाला पानी नाली से होकर इन गांवों के तलाबों में जमा होता था।जिससे हजारों एकड़ भूमि सिंचित हुआ करता था।जिससे किसान खुशहाल रहते थे।परंतु हजारों किसानों के घर खुशियां बिखेरने वाला नाली आज अपना ही स्तित्व बचाने की गुहार लगा रहा है। तालाबों में पानी नहीं आने से हजारों एकड़ भूमि बंजर बनता जा रहा है। किसानों ने झारखंड सरकार,सांसद,विधायक व जिलाधिकारी को ध्यान आकृष्ट करते हुए पक्की नाली का निर्माण कर बंजर हो रहे भूमि को बचाने की गुहार लगाई है।


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