खुद को गरीबों का मशीहा कहने वालों के लिए मुकेश कुमार की कविता देखे

जिन्होंने देखी नहीं कभी गरीबी

क्या रहेगी उनकी दर्द से करीबी

चतरा के राजनेताओं भले ही,

हमदर्दी के बयान देकर तालियां बटोर लें यह अलग बात है,

प्रचार सुख में गुजरता उनका दिन बहलती रात है।

कहें दीपक बापू पर्दे पर नकली जंग रोज दिखती है,

बंदूक और तोप नहीं कलम पहले उसकी पटकथा लिखती है,

पेशेवर सजाते  चित्र प्रदर्शनी जो समाचार जैसे लगते हैं,

देख कर वाह वाह कर रहे दर्शक खुद को ठगते हैं,

नायकत्व की छवि बन गयी है बहुत सारे इंसानी बुतों की

बाहर बैठे निर्देशकों के इशारे से पर्दे पर चलते फिरते हैं

मजे लेने में लगे लोग क्या जाने यह अंदर की बात है।

गरीबों का मशीहा बनकर वोट बटोरते है,
चुनाव जीतने के बाद गरीबों को देखने तक नही आते है।

यहां की सासंद हो या विधायक ,
गरीबी पाल कर रखते है।
हर चुनाव में गरीबी ही मुद्दा बनता है।

हमदर्दी के बयान देकर तालियां बटोरते है।

देख कर वाह वाह कर रहे दर्शक खुद को ठगते हैं।
                                       


                                            (मुकेश कुमार यादव)

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