*आज रात से भगवान भाष्कर हो जायेंगे उत्तरायण* :- *आचार्य* *चेतन कुमार पाण्डेय*

*आज रात से भगवान भाष्कर हो जायेंगे उत्तरायण*

आलेख...

         *आचार्य*
*चेतन कुमार पाण्डेय*
*जन्मकुंडली, वास्तु व कर्मकाण्ड परामर्श*

ग्रहों के राजा त्रिभुवन भगवान भास्कर रविवार की रात के बाद दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाएंगे। इसके साथ ही भगवान सूर्य के 6 माह के यामायन की यात्रा पूर्ण हो जाएगी और वे सौम्यायन हो जाएंगे। भगवान सूर्य नारायण के उत्तरायण होते ही पिछले एक माह से चले आ रहे खरमास भी समाप्त हो जाएगा। खरमास समाप्त होने के साथ ही सनातन धर्मावलंबियों की सभी धार्मिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। हालांकि शुक्र के अस्त होने के कारण इस वर्ष कई वर्षों के बाद पहली बार मांगलिक कार्यों पर आगामी तीन फरवरी तक ब्रेक रहेगा। भगवान भास्कर रविवार की रात्रि 7 बज कर 35 मिनट पर धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्यास्त के बाद संक्रांति काल होने के कारण मकर संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन सोमवार को होगा। मकर संक्रांति ऋतु परिवर्तन का संदेश वाहक दिवस है और देवताओं का प्रभात बेला है जो शिशिर वसंत ऋतु के आगमन की तैयारी को लेकर आता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति का दिन ही वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है जब भगवान सूर्य यामायन से सौम्यायन होते हैं और ठिठुरते कांपते हूए शीत से धूप की विजय यात्रा शुरू होती है। मकर संक्रांति भगवान सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिन भी माना गया है। मकर संक्रांति का पुण्यकाल में गंगा स्नान ध्यान एवं तिल का दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सूर्य नारायण की आराधना करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

*उत्तरायण का है बड़ा महत्व*

श्रीमद्भागवत गीता में उत्तरायण का महत्व वर्णित है। गीता में वर्णन है कि उत्तरायण काल में मृत्यु होने से मानव श्री कृष्ण के परम धाम को प्राप्त करता है और जन्म एवं मृत्यु से मुक्त हो जाता है। जबकि अन्य काल में प्राण त्यागने वाले मनुष्य को दोबारा जन्म लेना पड़ता है। महाभारत में अर्जुन के बाणों की शैया पर 40 दिन तक रहने के बाद भीष्म पितामह ने उत्तरायण को ही अपना प्रान त्यागा था।

*मकर संक्रांति पर है तिल दान का विशेष महत्व*

स्नान व दान का महापर्व मकर संक्रांति पर तिल से भगवान सूर्यनारायण की पूजा अर्चना करने तेल दान करने से असाध्य रोगों पर विजय मिलती है। तिल दान का महत्व श्रीमद्भागवत और देवी भागवत में विशेष रुप से वर्णित है। देवी पुराण के अनुसार सूर्य पुत्र शनि एवं उनकी पत्नी छाया को कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए सूर्य का पूजा का विधान बताया गया था। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में शनि के घर पहुंचते हैं। तब उनकी पूजा उनकी शनि ने तिल से की थी। जिसके प्रभाव से शनि का असाध्य रोग दूर हो गए थे। तब से भगवान भास्कर की आराधना में तिल का विशेष महत्व दिया गया है।  पद्म पुराण के अनुसार इस दिन तिल दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

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